कमरछठ कहानी : देरानी-जेठानी

वीरेन्द्र ‘सरल‘
एक गाँव में एक देरानी अउ जेठानी रहय। जेठानी के बिहाव तो बहुत पहिलीच के होगे रहय फेर अभी तक ओखर कोरा सुनना रहय। अड़बड़ देखा-सुना इलाज-पानी करवाय फेर भगवान ओला चिन्हबे नइ करय। मइनखे मन ओला बांझ कहिके ताना मारे। जेठानी के जीव ताना सुनई में हलाकान रहय। सास-ससुर अउ ओखर गोसान तक ओला नइ भावय। ओहा निचट निर्दयी घला रहय काखरो लोग लइका ला नइ भाय। सब ला गारी बखाना दे। उहीच घर में जब ओखर देरानी ह बिहा के अइस तब साल भर में ओखर कोरा हरियागे। घर में नान-नान दु झन लइका के किलकारी गुंजे लगिस। देरानी बर सास-ससुर, पारा-मोहल्ला के सब मनखे घातेच मया करय काबर ओहा बहुत सुघ्घर व्यवहार के रहय। ये सब ला देख के जेठानी क जीव में रातदिन ईर्श्या के आगी धधकत रहय। ओहा ये सब के कारण अपन देरानी के लइका मन ला समझय अउ ओमन ला मारे के उदिम करे फेर मउका नइ मिलत रहय।
एक समय के बात आय। कमरछठ के दिन पड़े रहय। देरानी-जेठानी के सास-ससुर अउ घर गोसान मन सबो झन जरूरी काम ले के दूसर गाँव गे रहय। आज घर के सियानी जेठानी के हाथ में रिहिस। ओहा बिहिनया ले अपन देरानी संग फोकटे-फोकट, नान-नान बात के ओखी करके झगड़ा लड़ई करे के षुरू कर दिस अउ लकड़ी लाय बर जंगल जा कहिके मजबूर कर दिस।
देरानी कलप-कलप के किहिस-दीदी! आज कमरछठ के तिहार आय। आज नांगर चले खेत में रेंगे ले अल्हन आथे कहे जाथे। भोरहा में मोर पांव कोन्हो अइसने ठउर में पड़ जही तब अनित हो जाही। आज नहीं, लकड़ी बर काली जंगल चल देहूं। फेर जेठानी मानबे नइ करिस।
काय करे बपरी देरानी ह अछरा में आंसू ला पोछत डोरी धर के घर ले जंगल जाय बर निकलगे। देरानी ह जंगल गिस तहन जेठानी ह ओखर दुनो झन दुधमुहां लइका मन ला आगी में लेस डारिस अउ राख माटी ला बाहर-बटोरके गांव के बाहिर घुरवा में लेगे के फेक दिस।
येती देरानी ह घेरी बेरी-कमरछठ भगवान ला सुमरत अपन लइका मन के रक्षा करे बर गोहार लगावत रिहिस। जब ओहा मझनिया बेरा मुड़ में लकड़ी के बोझा राखे घर लहुटत रिहिस तब घुरवा तीर आके देखथे कि ओखर दुनो झन लइका मन घुरवा के गोबर कचऱा में सनाय मनमाने खेलत रहय। ओहा-हाय दई! मोर लइका मन ला इहां कोन बैरी लान के छोड़ दे हे हावे कहिके दुनो झन ला काबा भर पोटार के अपन हिरदे में लगा लेथे। उहीं मेरन के तरिया में लइका मन ला बने नहा-धोवा के घर लानथे अउ एक मन के आगर कमरछठ भगवान के पूजा पाठ करथे। लइका मन ला जियत जागत देख के जेठानी बक खा जथे। जइसे देरानी के दिन बहुरिस तइसे सबके बहुरय। बोलो कमरछठ भगवान की जय।
chhattisgarhi folk tales

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